किसानों के मौत का फरमान हैं मोदी सरकार के कृषि कानून.. शिव सिंह
किसानों के मौत का फरमान हैं मोदी सरकार के कृषि कानून.. शिव सिंह
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रीवा मध्य प्रदेश ... संयुक्त किसान मोर्चा के संयोजक किसान नेता शिव सिंह ने मोदी सरकार पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार ने कृषि से संबंधित जो तीन बिल संसद में पारित किए और राष्ट्रपति ने उन विलो पर हस्ताक्षर करके मंजूरी दिया उक्त तीनों बिल देश के किसानों के खिलाफ मौत के फरमान हैं
नए कृषि कानून
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1= किसानों की उपज व्यापार और वाणिज्य कानून 2020
2= मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं संबंधी सशक्तिकरण और संरक्षण करार कानून 2020
3= आवश्यक वस्तु संशोधन कानून 2020
उक्त तीनों कानून राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद दिनांक 27 सितंबर 2020 को भारत के राज्यपत्र में प्रकाशित किए गए हैं
मोदी सरकार के किसान बिल किसानों की मौत के फरमान
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देश में लागू उदारीकरण की नीतियों से किसानों की समस्याएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है अब तो कृषि समस्या ने एक संकट का रूप ही ले लिया है किसान कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं और फसल का उचित दाम उन्हें नहीं मिल रहा है कृषि संकट का ही नतीजा है कि देश में किसानों की आत्महत्याओं की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है अभी तक देश में 4 लाख से अधिक किसान आत्महत्या करने को विवश हुए हैं मोदी सरकार के पिछले 6 वर्षों के राज में किसानों की आत्महत्या की दर में 40 फ़ीसदी बढ़ोतरी हुई है अब सरकार ने किसान आत्महत्याओं के आंकड़े प्रकाशित करने पर भी रोक लगा दी है आज समूचा देश आर्थिक संकट की गिरफ्त में है देश का सकल घरेलू उत्पाद ऋणात्मक 23 फ़ीसदी पर पहुंच गया है ऐसे में मोदी सरकार ने तीन कृषि विरोधी कानून पारित कर किसानों को पुरस्कार देते हुए उनके मौत का फरमान जारी किया है जो देश के किसानों के लिए बेहद चिंता का विषय है
किसान मंडियों में होगी खुलेआम डकैती
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मोदी सरकार के इस काले कानून से किसान मंडियों में किसानों के साथ खुलेआम डकैती होगी इस कानून से अब व्यापारियों को किसान की उपज कृषि उपज मंडी में जाकर खरीदने की बाध्यता नहीं रह गई है अभी तक हमारे देश के किसान अपनी उपज को मंडियों और सहकारी समितियों में या बाजार समितियों के पास ले जाकर बेचते थे यह संस्थाएं किसानों को सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित कराने का माध्यम रही हैं हमारे देश में लगभग 7000 से ज्यादा मंडियां हैं जहां पर किसान पंजीकृत व्यापारियों के पास जाकर निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य में अपनी उपज बेच सकते थे जिससे सरकार को राजस्व भी प्राप्त होता था लेकिन नए कानून से किसान की सारी सुविधाएं खत्म कर दी गई मजबूर किसान को समर्थन मूल्य से कम कीमत पर ओने पौने दाम पर अपनी उपज को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा हमारे देश में किसानों का 86 फ़ीसदी हिस्सा ऐसा है जिसके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है क्या वह सीमांत और लघु किसान अपना अनाज बेचने के लिए बड़े बड़े व्यापारियों के साथ मोलभाव कर सकते हैं क्या वे अपनी उपज का भंडारण अधिक दिनों तक कर सकते हैं ऐसे किसानों के पास व्यापक संकट पैदा है स्वामीनाथन आयोग ने भी सिफारिश किया था कि किसानों को 5 किलोमीटर की दूरी में अपनी उपज को बेचने की सुविधा मिलनी चाहिए ऐसे में मोदी सरकार के कानून पूर्णता किसान विरोधी हैं
किसान को फसल का समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा
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मोदी सरकार के नए कृषि कानून ने फसलों के सरकारी समर्थन मूल्य की प्रणाली को पूरी तरह से अप्रसांगिक बना दिया है किसानों की फसल जब सरकार समर्थन मूल्य में खरीदेगी ही नहीं तब समर्थन मूल्य खत्म करने या नहीं करने से कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है ऐसे में किसानों को अपनी फसल को खुले बाजार में व्यापारियों द्वारा निर्धारित किए गए दामों में बेचने को मजबूर किया जा रहा है यदि मोदी सरकार को किसानों के हितों की वाकई चिंता थी तो कानून में वह यह प्रावधान करती कि जो कोई भी किसानों की फसल सरकार द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य से कम कीमत पर खरीदेगा तो उसके खिलाफ अपराध पंजीबद्ध किया जाएगा ऐसे भी समर्थन मूल्य का लाभ किसानों को मिल सकता था लेकिन सरकार ने अपने कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया है सरकार का घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश से 20 से 30 फ़ीसदी तक कम है आयोग की सिफारिश है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य फसल का सी-2 लागत का डेढ़ गुना होना चाहिए ऐसे में मोदी सरकार का यह काला कानून किसान के लिए घातक है
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश पर सरकार की विरोधी नजर
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देश का किसान लगातार सरकार से यह मांग करता रहा कि सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को मानते हुए फसल की उपज का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करें कानून बनाए तथा सरकार किसानों से उनकी सभी उपजो का इस समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीदी करने का कानून बनाए पूरी फसल खरीदने की गारंटी दे ऐसे में अगर कोई व्यापारी सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर किसान से फसल खरीदी करता है तो उसको दोषी मानते हुए मुकदमा चलाना चाहिए लेकिन मोदी सरकार जो समर्थन मूल्य घोषित करती है उसको निर्धारित करते समय न तो कृषि भूमि का किराया जोड़ती है और न ही अपने स्वयं के खेत में काम करने वाले किसान और उसके परिवार के सदस्यों की मेहनत मजदूरी को जोड़ती है इसका मतलब यह है कि सरकार यह मानती है कि किसान और उसके परिवार के सदस्य अपने ही खेत में बेगारी करते हैं सरकार का यह कानून झूठा और सरासर धोखाधड़ी पूर्ण है यह कानून वास्तव में किसानों को अपनी ही जमीन पर गुलाम बनाता है खेती करने के लिए बड़ी-बड़ी कंपनियों और व्यापारियों के साथ किसानों का समझौता होना स्वाभाविक है कि यह समझौता असमानता से भरा होगा और इन धनी व्यापारियों और कंपनियों के पक्ष में ही झुका होगा जब हमारे गांव के किसी किसान का अंबानी अडानी या किसी दूसरे बड़े व्यापारी के साथ समझौता होगा तो उसे इन व्यापारियों की शर्तों को ही स्वीकार करने को बाध्य होना पड़ेगा ठीक उसी प्रकार जैसे कोई गरीब आदमी कर्ज लेने पर किसी सूदखोर की बातों को मानने के लिए विवश होता है ऐसा समझौता किसान के लिए बेहद घातक होगा उदाहरण स्वरूप अगर देश को जरूरत है चावल की लेकिन कंपनी को अगर आलू चिप्स बनाकर बेचने में ज्यादा मुनाफा दिखता है तो कंपनी किसान के साथ आलू पैदा करने के लिए समझौता करेगी और किसान अपने ही खेत में आलू पैदा करने के लिए मजबूर हो जाएगा तथा इस कानून के अनुसार किसान को संबंधित व्यापारी या कंपनी से ही खाद बीज कीटनाशक और अन्य चीजें खरीदनी होगी किसानों की इस मजबूरी का फायदा उठाकर यह सभी चीजें कंपनी या व्यापारी ऊंचे दामों पर किसानों को बेचेंगे और किसान उसे खरीदने को मजबूर हो जाएगा तथा उन्हीं कंपनियों को किसान अपनी उपज बेचने को भी मजबूर होगा किसानों के प्रति मोदी सरकार का ऐसा रवैया शर्मनाक है
किसान के अलावा समाज के दूसरे तबके पर इस कानून का व्यापक असर
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देश यह जानता है यहां का अन्नदाता किसान मुनाफा कमाने के लिए खेती नहीं करता बल्कि देश की खाद्यान जरूरतों को पूरा करने के लिए करता है ऐसे में मोदी सरकार के इस काले कानून से देश की खाद्य सुरक्षा पर व्यापक प्रतिकूल प्रभाव पड़ने वाला है अगर कृषि में ठेका पद्धति लागू हो जाती है तो कंपनियां अधिकतम मुनाफा कमाने के उद्देश्य से फसल उत्पादन करने के लिए किसानों पर दबाव बनाएगी और उन्हें अपने जाल में फासाएंगे खाद्यान्न और अनाज उत्पादन गौण हो जाएगा आज हमारे देश के गोदामों में 10 लाख करोड़ टन से ज्यादा खाद्यान्न का भंडारण मौजूद है लेकिन इसके बावजूद भी दुनिया में सबसे ज्यादा कुपोषित आबादी हमारे देश में ही है ऐसे में ठेका खेती से व्यापारियों व कंपनियों के मुनाफे के लालच के कारण हमारी खाद्यान्न आत्मनिर्भरता नष्ट हो जाएगी और हमें अपनी खाद्यान्न जरूरतों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर होना पड़ेगा तथा अगर सरकार किसान की फसल नहीं खरीद सकती तो किसान व्यापारियों के पास ही औने पौने दाम पर अपनी फसल बेचने को मजबूर होगा ऐसे में खाद्यान्न के भंडारण पर मुनाफाखोरी व्यापारियों और कंपनियों का पूरा कब्जा हो जाएगा वह अनाज का भंडारण करके कालाबाजारी करेंगे जिससे जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा और देशवासियों को मनमाना महंगे दाम पर खाद्यान्न खरीदने को मजबूर होना पड़ेगा आवश्यक वस्तु कानून का भी बुरा असर पड़ेगा सरकार किसानों की फसलों की महंगाई पर हस्तक्षेप नहीं कर सकेगी उदाहरण स्वरूप बाबा रामदेव की पतंजलि कंपनी को यह छूट है कि वह किसानों से 10 रुपए किलो में गेहूं खरीद कर 35 रुपए किलो में आटा बेचे तो अगले साल वह 70 रुपए किलो के गेहूं को 140 रुपए में आटा बनाकर बेचेगी ऐसे कानून से सरकार बाबा रामदेव की कंपनी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर सकती
नए कृषि कानून से किसानों एवं देशवासियों पर व्यापक असर
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मोदी सरकार के तीनों नए कानून दिखने में भले ही अलग-अलग हो लेकिन इनके बीच गहरा आपसी रिश्ता है क्योंकि यह तीनों कानून बड़े बड़े व्यापारियों और कृषि का व्यापार करने वाली कारपोरेट कंपनियों के हितों के अनुरूप ही बनाए गए हैं इन तीनों कानूनों का मिलाजुला प्रभाव किसानों और देशवासियों के जीवन मात्र के लिए बहुत खतरनाक होगा किसानों को फसल का बाजारू समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा उपज की खरीदी में कंपनियां एवं उनके दलाल सक्रिय रहेंगे मंडियों का नियंत्रण समाप्त हो जाएगा किसान को कर्ज के फंदे में फसाया जाएगा किसान बर्बाद हो जाएंगे किसान अपनी फसल को लाभकारी मूल्य पर बेचने को विवश होगा किसान की जब सरकारी खरीद रुक जाएगी तब भंडारण और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था भी समाप्त हो जाएगी तब खाद्यान्न आवश्यक वस्तु ही नहीं रहेगा भाव एवं व्यापार पर सरकारी नियंत्रण खत्म हो जाएगा पूंजीपति गोदामों में माल जमा कर जमाखोरी कालाबाजारी करेगा ऐसे में खेती-किसानी घाटे का सौदा हो जाएगा किसान धीरे-धीरे अपनी जमीन और जीविका के साधन से वंचित हो जाएंगे बीज कीटनाशक एवं खाद आपूर्ति पर व्यापक भ्रष्टाचार होगा तथा किसान को पानी बिजली भी महंगी हो जाएगी अत्यधिक रासायनिक पदार्थों का उपयोग होगा देश का पर्यावरण बिगड़ेगा बीमारियां बढ़ेगी कृषि अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाएगी इससे जुड़े लोगों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी किसान आत्महत्याओं में और तेजी से वृद्धि होगी
कृषि कानूनों पर वैज्ञानिकों की राय
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मोदी सरकार के नए किसान कानूनों पर वैज्ञानिकों का यह मानना है कि मोदी सरकार किसानों को झूठा सपना दिखाकर गुमराह कर रही है क्योंकि मध्य प्रदेश का सीमांत व छोटा किसान बेहतर दाम पाने के लिए अपने टमाटर को बेचने के लिए केरल तो नहीं ले जा सकता उनका साफ कहना है कि कृषि क्षेत्र में दलालों को समाप्त करने का सरकार का दावा पूरी तरह से खोखला व निराधार है क्योंकि अब मोदी सरकार खुद ही कारपोरेट घरानों की दलाल बन गई है अब बड़े बड़े कारपोरेट घराने ही कृषि को नियंत्रित करेंगे जो देश की कृषि नीति एवं किसानों के खिलाफ है
किसानों को अदालत जाने का अधिकार छीनते कानून
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सरकार के नए किसान बिल प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत को भी छीनते हैं कानून के अनुसार इस तरह की खरीददारी करने वाली कंपनियों और व्यापारियों पर किसी भी तरह का टैक्स नहीं लगाया जाएगा और यदि खरीदारी में कोई बेईमानी व विवाद उत्पन्न होता है ऐसी स्थिति में राज्य सरकारें व्यापारियों एवं उद्योगपतियों के खिलाफ कुछ नहीं कर सकेंगी लोकतांत्रिक तरीकों से निर्वाचित सरकार अधिकार विहीन रहेगी अध्यादेश के मुताबिक कंपनी किसी भी गड़बड़ी या उसके और किसान के बीच उत्पन्न विवाद पर अदालते सुनवाई तक नहीं कर सकेंगी सिर्फ केंद्र सरकार के दिशा निर्देश पर ही कलेक्टर और एसडीएम कार्य कर सकेंगे ऐसा कानून लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ है
किसान बिल को लेकर भाजपा का दुष्प्रचार
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भाजपा तथा आर एस एस के लोग किसान बिल को लेकर देश के सामने गलत दुष्प्रचार कर रहे हैं उनका कहना है कि विपक्ष किसान बिल को लेकर राजनीति कर रहा है जबकि देश की वास्तविक तस्वीर कुछ और भी है कोरोना महामारी लॉकडाउन में देश की अर्थव्यवस्था तो खत्म ही हो गई अनियोजित अविचारपूर्ण और अवैज्ञानिक लॉकडाउन के कारण असंगठित क्षेत्र के 15 करोड मजदूर और संगठित क्षेत्र के 2 करोड से अधिक कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं बढ़ती बेरोजगारी के कारण मजदूरों की औसत मजदूरी मे भी भारी कमी आई है लोगों की जेब में पैसे नहीं है अर्थव्यवस्था भारी मंदी में फंस गई है मोदी सरकार में मुकेश अंबानी अदानी की संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि हुई है सरकार के पास न तो बेरोजगारी के आंकड़े हैं और न ही प्रवासी मजदूरों की संख्या कोरोना लॉकडाउन में कितने प्रवासी मजदूर मरे उसका भी सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है कोरोना की दूसरी लहर से ऑक्सीजन एवं दवाओं के अभाव एवं सरकार की लापरवाही के चलते देश के अंदर लाखों मौतें हुई देश लाशों की मंडियां बन गया सरकार पूरी तरह संवेदनहीन घमंडी अहंकारी तानाशाह हो चुकी है
देश की खाद्यान्न आत्मनिर्भरता नष्ट होने का खतरा
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किसान बिल संशोधन से देश की खाद्यान्न आत्मनिर्भरता के नष्ट होने का खतरा उत्पन्न हो चुका है हमारे देश की आम जनता और ज्यादा भुखमरी का शिकार तो होगी ही विदेशी मुद्रा संकट बढ़ने से देश की अर्थव्यवस्था भी डामाडोल होगी देश की अस्थिर अर्थव्यवस्था उस देश की राजनीति को भी अस्थिर करती है ऐसे में देश गुलामी की ओर अग्रसर होगा देश की सरकार अपनी जनता के हितों के मद्देनजर राजनीतिक निर्णय लेने की क्षमता में नहीं रहेगी देश कारपोरेट जगत के हाथों बिकने को मजबूर हो जाएगा और किसानों का देश भारत फिर से गुलाम हो जाएगा
विद्युत कानून 2020 किसान के फांसी का फंदा
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पूरा देश जब कोरोना महामारी से जूझ रहा था तब 17 अप्रैल 2020 को सरकार बिजली निजीकरण के लिए बिजली संशोधन बिल 2020 का ड्राफ्ट जारी कर रही थी सरकार आगामी समय में इस कानून को भी पास करने पर आमादा है जब यह बिजली कानून पास हो जाएगा तो बिजली वितरण का निजीकरण हो जाएगा सब्सिडी व क्रास सब्सिडी खत्म हो जाएगी किसानों को कम से कम 8 रुपए यूनिट बिजली खरीदनी पड़ेगी प्रतिमाह किसान को 6 हजार रुपए का बिजली बिल भरना पड़ेगा जो किसान बिल नहीं भर पाएगा उसका कनेक्शन काट दिया जाएगा जिससे उसकी फसल बर्बाद हो जाएगी उसको सस्ती बिजली नहीं मिल पाएगी साथ में भारी जुर्माना और विरोध करने वालों को बिना कोर्ट में केस किए सीधा जेल भेजने के भी प्रावधान हैं सरकार का यह कदम किसानों गांव के गरीबों व छोटे व्यापारियों तथा दुकानदारों और आम घरेलू बिजली उपभोक्ताओं पर सीधा हमला है यह कानून किसान के लिए फांसी के फंदे से कम नहीं है
देशव्यापी आंदोलन ही बचाव
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मोदी सरकार के कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ पूरे देश के किसान और उनका प्रतिनिधित्व करने वाले सैकड़ों संगठन संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले एकजुट होकर विगत 7 महीनों से सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं अभी तक में 500 से अधिक किसान अपनी शहादत दे चुके हैं सरकार लगातार किसान आंदोलन को कुचलने तरह-तरह के हथकंडे अपना रही है जुल्म ज्यादती कर रही है लेकिन किसान किसी भी सूरत पर आंदोलन से पीछे हटने वाला नहीं है समूचे देश का किसान बिल वापसी के बाद ही घर वापसी का एलान कर चुका है जिसे देश के सभी प्रमुख मजदूर युवा छात्र महिला संगठन राजनीतिक दलों समाजसेवी संगठनों ने अपना समर्थन दिया पूरे देश में किसान साझा आंदोलन कर रहे है आइए हम सभी देशवासी सरकार के इस काले कानून के खिलाफ एकजुट होकर कानून वापसी के लिए सरकार को मजबूर करें
जय किसान जय अन्नदाता
भवदीय
शिव सिंह किसान नेता
संयोजक संयुक्त किसान मोर्चा रीवा संभाग मध्य प्रदेश
MO. 9893229788
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