बापू के ग्राम स्वराज का सपना अधूरा पंचायत राज व्यवस्था चौपट ÷ लालमणि त्रिपाठी*
*बापू के ग्राम स्वराज का सपना अधूरा पंचायत राज व्यवस्था चौपट ÷ लालमणि त्रिपाठी*
गांव की हकीकत पंचायत व्यवस्था बापू का एक सपना था दुनिया की 90% आबादी गांवों में निवास करती है गांव में मूलभूत सुविधाओं की हमेशा कमी बनी रहती है महात्मा गांधी जी का सपना था गांव के विकास का गांव के लोगों को जागरूक करने का गांव के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने गांव के लोगों को अच्छी शिक्षा देने का सड़क बिजली पानी एवं अन्य संसाधन जरूरतों को पूरा करने के लिए बापू का सपना अधूरा रह गया है !
कार्यपालिका न्यायपालिका पर लोगों का भरोसा बना रहता है ग्राम पंचायत एक ऐसी संस्था है जो वित्तीय रूप से स्वतंत्रता के लिए जानी जाती है ग्राम पंचायतों में स्वयं पैसा खर्च करने का अधिकार है यह अधिकार और किसी भी संस्था को नहीं है चाहे नगर परिषद नगर निगम हो चाहे सांसद विधायक हो या और कोई शासकीय संस्था हो जिसको सिर्फ राशि जारी करने का अधिकार होता है स्वयं खर्च करने का अधिकार नहीं होता है मगर यह अधिकार ग्राम पंचायतों को है मैं भी जब चुनाव लड़ा था तो मेरा एक सपना था कि मेरे द्वारा अपने वार्ड क्रमांक 15 में पंचायत व्यवस्था को लेकर संघर्ष करूंगा मेरा दौरा अपने क्षेत्र में हमेशा बना रहता है मगर करोड़ों करोड़ों रुपए खर्च करने वाली ग्राम पंचायतों में ताला बंद रहता है कार्यालय कभी नहीं लगाई जाती है आम जनता आवेदन लेकर के सरपंच एवं सचिव ग्राम रोजगार सहायक के पास घर पर पहुंचते हैं जहां पर उनका शोषण किया जाता है ग्राम पंचायतों में सरकार द्वारा सारी सुविधा दी जाती है कंप्यूटर दिए गए हैं बिजली के बिल ग्राम पंचायतों द्वारा भरा जाता है मगर कार्यालय कभी नहीं खोला जाता है पंचायतों में शासन द्वारा निर्देश दिए गए हैं कि समय पर 10:30 बजे कार्यालय खोलें और शाम 5:00 बजे तक कार्यालय पर बैठकर जनता का कार्य करें निर्वाचित सरपंच भी समय-समय पर कार्यालय पर बैठकर जनता के प्राप्त आवेदनों पर विचार कर कार्यवाही करें मगर यह सपना अधूरा रह गया है मेरे वार्ड क्रमांक 15 में जितने भी पंचायतें हैं उसका लगातार दौरा हमारे द्वारा किया जा रहा है जल्द ही समस्त पंचायतों का वीडियो फुटेज कलेक्टर रीवा को दिनांक वार समय बार दिया जाएगा क्योंकि जब तक ग्राम पंचायत का कार्यालय नहीं लगाया जाता कर्मचारी नहीं बैठते तब तक जनता के कार्य नहीं हो सकते हैं इसके लिए कौन जिम्मेदार हैं या तो वरिष्ठ अधिकारी जिम्मेदार हैं या तो ग्राम पंचायत के कर्मचारी जिम्मेदार हैं अगर कार्यालय नहीं खुलते हैं तो इन पर कार्यवाही करने की जरूरत है क्योंकि हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जनता ने हमें चुनकर जनता के सेवक के रूप में जिला पंचायत भेजा है तो उसमें मेरा भी दायित्व बनता है कि जनता के अधिकारों की बात हम शासन प्रशासन तक पहुंचाने का काम करें उपरोक्त उद्गार रीवा जिले के सबसे अलग चर्चित चेहरों में सब को अपनी ओर आकर्षित करने वाले *वार्ड क्रमांक 15 के जिला पंचायत सदस्य लालमणि त्रिपाठी* ने व्यक्त करते हुए कहा है कि पंचायतों को संचालित कराने का मेरा जो सपना था उसको हम पूरा करेंगे अगर शासन प्रशासन द्वारा व्यवस्था नहीं बनाई जाती है तो मैं भूख हड़ताल करूंगा कलेक्टर से मिलूंगा क्षेत्रीय विधायक से मिलूंगा मुख्यमंत्री से मिलूंगा अगर फिर भी ग्राम पंचायत कार्यालय में कठिनाई उत्पन्न होती है तो लालमणि त्रिपाठी भूख हड़ताल पर बैठेंगे और शासन प्रशासन से कार्यवाही की मांग करेंगे जब नियम है कार्यालय खुले जनता ना भटके सभी का काम हो मगर शासन के नियमों के धज्जियां उड़ाई जा रही हैं बापू का सपना अभी भी अधूरा है जिसकी कल्पना हम लोग नहीं कर पा रहे हैं मगर शासन प्रशासन को इस पर ध्यान देने की जरूरत है !
पंचायती राज व्यवस्था एक सशक्त प्रभावी स्थानीय स्वशासन व न्यायिक व्यवस्था है। इसे मजबूत कर लोगों को सुलभ न्याय दिलाने के दृष्टिकोण से गठित यह व्यवस्था अब तक मजबूत ढांचा का शक्ल नहीं ले सका है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज का सपना उनके सपनों के अनुरूप नहीं हो सका है। पंचायती राज के अनुरूप संसाधनों की कमी इसमें बड़ी बाधा बनी है। पंचायत के चुनाव हुए तो आम लोगों को लगा कि ग्राम स्वराज का सपना उनका पूरा होगा। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और धीरे-धीरे पांच वर्षो का कार्यकाल गुजर गया। फिर चुनाव हुआ, तब लोगों को लगा कि शायद इस बार उनकी कोई न तो समस्याएं रहेंगी न ही शिकायतें। जनता ने इस उम्मीद में पंचायतों की सरकार बनाती हैं की इस बार सब पूरा हो जायेगा। लेकिन उम्मीद ऐसी नहीं दिख रही है। सड़क, गांव की नाली, गली, पुल-पुलिया सहित आदि छोटी-छोटी योजनाएं एवं ऊपर से जांच पर जांच की तलवार की धार के भय से पंचायत एजेंसी ने हाथ खड़ा कर लिये। व्यवस्था के खिलाफ मनरेगा कर्मियों की लंबी हड़ताल-धरना एवं प्रदर्शन जिले में चला। आंदोलन एक बार नहीं बल्कि कई बार हुए।
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