सिकल सेल डिसीज की चपेट में भारत,पहुंचा विश्व स्तर पर दूसरे स्थान पर : डा. तापस
सिकल सेल डिसीज की चपेट में भारत,पहुंचा विश्व स्तर पर दूसरे स्थान पर : डा. तापस -------संजयगांधी अस्पताल के मल्टी-डिसीप्लीनरी रिसर्च यूनिट में एक दिवसीय सिकल सेल डिजीज रिसर्च कान्फ्रेंस का हुआ समापन
रीवा, एमपीजेएस न्यूज़।
मल्टी-डिसीप्लीनरी रिसर्च यूनिट मे रीसेन्ट अपडेट्स ऑन सिकल सेल डिसीज SCDR-2024 पर एक दिवसीय कॉन्फ्रेस 7 मार्च को सम्पन्न हुआ । यह कॉन्फ्रेस MPCST भोपाल से स्पॉन्सर्ड रही। मध्यप्रदेश मेडिकल कॉउसिल से दो क्रेडिट आवर का एक्रीडिटेशन प्राप्त थी । कार्यक्रम मे मुख्य अतिथि डाँ. ज्योति सिंह, पूर्व विभागाध्यक्ष पीडियाट्रिक विभाग मेडिकल कॉलेज रीवा रहीं । क्रॉन्फ्रेस की आर्गेनाईजर कमेटी में चेयरमेन डाँ. मनोज इन्दुरकर, मेम्बर सेक्रेटरी डाँ. राहुल मिश्रा, कान्वेनर डाँ. शंखपाणि महापात्रा तथा आर्गेनाईजर मेम्बर डाँ. संजय कुमार पाण्डेय थे । कार्यक्रम मे मध्यप्रदेश मेडिकल काउन्सिल द्वारा नियुक्त किये गये आब्जर डाँ. मनीष सुल्या, गाँधी चिकित्सा महाविद्यालय भोपाल उपस्थित थे। जिन्होने कार्यक्रम का बिन्दुबार बारीकी से निरीक्षण किया । कार्यक्रम मे स्वागत उद्भोदन डाँ. राहुल मिश्रा नोडल अधिकारी एमडीआरयू द्वारा किया गया ।
कार्यक्रम मे मुख्य वक्ता डाँ. तापस चकमा, वैज्ञानिक जी, राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान- आईसीएमआर, जबलपुर, ने अपने वकत्व्य में बताया कि सिकल सेल डिजीज के वर्डन में भारत दुनिया भर में दूसरे स्थान पर है तथा भारत की अधिकतम खासतौर पर जनजातीय क्षेत्र के लोग इस बिमारी से ग्रसित है। उन्होने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि क्योंकि यह बिमारी आनुवाशिंक है । प्रभावित मरीज की पहचान यदि बाल्यावस्था में ही हो जाये तो इसका उपचार करने मे सुविधा हो सकती है। इस बिमारी से होने वाली क्षति को कुछ स्तर तक कम किया जा सकता है । इस हेतु इस बिमारी की जानकारी को स्कूली बच्चों के पाठ्यक्रम मे शामिल किया जाना चाहिए तथा सिकल सेल बिमारी के प्रति लोगो में जागरूकता आ सके।
डाँ. मनोज इन्दुरकर डीन मेडिकल कॉलेज रीवा ने सिकल सेल बिमारी के माल्यूकुलर स्तर पर विस्तृत वकतव्य दिया । उन्होने बताया कि सिकल सेल डिजीज मे आयरन एसीमिलेटर जीन की भूमिका एवं उनका प्रभाव क्या होता है । डाँ. लोकेश त्रिपाठी एसोसिएट प्रोफेसर पैथालॉजी विभाग मेडिकल कॉलेज रीवा ने बताया कि सामान्य से लेकर आधुनिक तकनीकियों कि संवेदनशीलता एवं विशेषता के बारे मे विसतृत जानकारी दी । डाँ. गौरव त्रिपाठी असिस्टेन्ट प्रोफेसर पीडियाट्रिक विभाग मेडिकल कॉलेज रीवा ने बताया कि सिकल सेल बिमारी में हाइड्रोक्सी यूरिया एक महत्वपूर्ण दवाई है। जिससे कि मरीज को एक स्थायी अवस्था मे संतुलित किया जा सकता है । उन्होने इस बिमारी के उपचार एवं मैनेजमेन्ट की विस्तृत जानकारी दी ।
सभी वक्ताओं ने सिकल सेल बिमारी की गम्भीर समस्या, निदान तथा बिमारियों पर वर्तमान में हो रहे शोध तथा मैनेजमेन्ट संबंधित टॉपिक पर अपने विचार प्रकट किये। विंन्ध्य रीजन मे सिकल संबंधित विषय पर मल्टी-डिसीप्लीनरी रिसर्च यूनिट द्वारा किये गये रिसर्च का डाँ. शंखपाणि महापात्रा, असिस्टेन्ट नोडल ऑफिसर एमडीआरयू द्वारा विस्तार में जानकारी दी गई ।
कॉन्फ्रेस मे मुख्य अतिथि डाँ. ज्योति सिंह ने उपस्थित सभी मेडिकल छात्र,पैरामेडिकल छात्र फैकल्टी एवं डॉक्टर्स को बिमारियों के प्रति जागरूकता एवं आये दिन हो रहे नये नये अनुसंधानों कि उपयोगिता के बारे मे बताया। कहां कि मल्टी-डिसीप्लीनरी रिसर्च यूनिट में ज्यादा से ज्यादा शोध परियोजनाओं में शामिल होकर तथा नये नये शोध करके बिमारियों के कारण निदान एवं उपचार मे सहभागिता सुनिश्चित करे ।
कान्फ्रेस मे 120 लोगों ने भाग लिया तथा 09 लोगों द्वारा पोस्टर प्रेजेनटेंशन प्रस्तुत किया गया । पोस्टर प्रेजेटेंशन के जज मेडिकल कॉलेज रीवा के डाँ. पी.के. लखटकिया, विभागाध्यक्ष हड्डी रोग विभाग, डाँ. नरेश बजाज विभागाध्यक्ष शिशु एवं बाल्य रोग विभाग तथा डाँ. आदेश पाटीदार विभागाध्यक्ष फार्मोकोलॉजी विभाग थे । पोस्टर प्रेजेनटेंशन में प्रथम पुरस्कार रिसर्च स्कॅालर श्रीमती स्वेता पाण्डेय मेडिकल कॉलेज रीवा, द्वितीय पुरस्कार डाँ. मृदुला जैन मेडिकल कॉलेज इन्दौर और तृतीय स्थान डाँ. प्रियदर्शिनी मेडिकल कॉलेज रीवा को प्राप्त हुआ ।
कॉन्फ्रेस मे प्रदेश भर के कई संस्थानों से मेडिकल छात्र, पैरा मेडिकल छात्र, रिसर्च स्कॉलर तथा फैकल्टी ने भाग लिया और सिकल सेल डिजीज से बचाव एवं उसके मैनेजमेन्ट तथा संबंधित रिसर्च अपडेट पर विचार मंथन किया । कार्यक्रम का संचालन रिसर्च स्कॉलर सपनिता सिन्दे ने किया ।
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