चुनावी चौपाल:: सुंदर नगरी अति विश्वास में राजा
चुनावी चौपाल:: सुंदर नगरी अति विश्वास में राजा रीवा। लोकसभा चुनाव अपने पूरे शबाब आ चुका है। आरोप -प्रत्यारोपों का दौरा भी शुरू हो चुका है। हर राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप लगाने में कोई कर पसंद नहीं छोड़ रहे हैं और अपने को साबित करने में जुटे हैं कि हमारी पार्टी और हम ही आम आम जनता के लिए कार्य करेगी बाकी पार्टी तो धोखा है? वोटरों को लुभाने के लिए पार्टी के नेता इस कदर तक जनता के सामने नतमस्तक होते दिख रहे हैं जिसकी कल्पना नहीं थी। पार्टी के नेता एक दूसरे पर निम्न स्तर के कीचड़ उछालने में ऐसे जुटे हैं जैसे कि नेताओं की कितनी बड़ी आपसी रंजिश चल रही हो? हालांकि मर्यादा को तोड़ चुके नेता सबकुछ जनता का करीबी बनने व विश्वास जीतने के लिए कर रहे हैं। चुनाव जीतने के लिए एक नेता तो गारंटी दे रहे हैं और दूसरे उनके कार्यकाल का हिसाब भी मांग रहे हैं। क्या कहते नहीं थक रहे की हम ही हैं पब्लिक के सच्चे हितेषी अगर हम हमें मौका मिला तो हम प्रयागराज में बह रही गंगा को गांव गांव तक बहा देंगे ताकि लोगों को गंगा दर्शन के लिए अन्यत्र न जाना पड़े? चुनावी जुमलों की तो पराकाष्ठा हो चुकी है, जिसे सुनते ही जानता अपने को उबाऊ महसूस करती है। होने जा रहे हैं लोकसभा चुनाव में हालांकि दो राष्ट्रीय पार्टियों के बीच ही मुख्य मुकाबला माना जा रहा है, कांग्रेस और भाजपा। एक पार्टी के सुंदर नगरी के रूप में प्रख्यात राजा अति विश्वास में चल रहे हैं वहीं दूसरी पार्टी के नेता उनके कार्यकाल का हिसाब मांगने से नहीं चूक रहे। हालांकि लोकसभा का चुनाव राष्ट्रीय मुद्दा आधारित रहता है इस पर ही लोगों का अधिकांश फोकस रहता है। जिसमें पार्टी ने तो दवा ही करते हुए कहा इस बार 400 के पार और दूसरी पार्टी अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिए संघर्षरत है। अब देखना यह होगा की देश के कर्मठ मतदाता किसके प्रलोभनों में ज्यादा फासते हैं। पार्टी की बात करें तो एक पर तो पारिवारिक पार्टी का लांछन लग चुका है। वहीं दूसरी पार्टी भी परिवारवाद की ओर बढ़ती दिखाई दे रही है। कोई अछूते नहीं रह गए आखिरकार सब पर कालिख लग चुकी है निर्दाग कोई नहीं बचे। आप पब्लिक को ही फैसला करना है कि आखिरकार देश की कौन सी राजनीतिक पार्टी आम जनता के हित में ज्यादा सोच रखती है। वोटिंग के समय जनता को देखना यह भी चाहिए कि इस सुंदर राष्ट्र जिसकी पहचान दुनिया भर में भाईचारे, अध्यात्म, संस्कृति, कला के रूप में होती आ रही थी। जिस पार्टी के नेता इसके संवर्धन व संरक्षण के लिए कार्य करें उसे ही राजा बनाएं। ताकि वह आने वाले समय में रजाई ओढ़ कर घी ना पी सके।( वरिष्ठ पत्रकार समशेर गहरवार, रीवा)
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