चुनावी चौपाल:: दलबदलुओं के ठाठ दल-बदल वाले किसी के नहीं होते, पंची जीतने की क्षमता नहीं बता रहे अपने को कद्दावर नेता
चुनावी चौपाल:: दलबदलुओं के ठाठ - दल-बदल वाले किसी के नहीं होते, पंची जीतने की क्षमता नहीं बता रहे अपने को कद्दावर नेता
रीता। अस्तित्व विहीन हो चुके ऐसे नेता जो पार्टी में रहकर भी अपनी मनमानी चलने से बाज नहीं आ रहे थे। जिनमें अपने घर परिवार का वोट लेने की क्षमता नहीं रही । यहां तक कि वह वार्ड का चुनाव कभी नहीं जीते,वहीं अब अपने आप को पार्टी का कद्दावर नेता बताकर वाहवाही लूटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। यह कहते हुए अब नहीं थक रहे की कांग्रेस पार्टी में रहकर कार्य किया लेकिन वहां स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ होता रहा। कभी किसी ने कोई अहमियत नहीं दी। जबकि वह पार्टी में रहकर भी लगातार अपना हित साधने में लग रहे। जब पार्टी के शीर्ष नेताओं ने निजी हित को दरकिनार करते हुए उन्हें अस्तित्वहीन कर दिया तो अब बीजेपी का चोला ओढ़ कर सदस्यता लेने में नहीं चूक रहे। वजह है कि चुनाव के चलते भारतीय जनता पार्टी को भी ऐसे नकारा नेताओ की ज्यादा जरूरत तो नहीं है लेकिन इस सोच के तहत बीजेपी के नेता ऐसे अस्तित्व विहीनो को पार्टी की सदस्यता देने में चूक नहीं कर रहे क्योंकि वह अन्य का वोट भले ही नहीं दिला सकते लेकिन पति-पत्नी तो जरूर पार्टी को ही वोट करेंगे। चुनाव के समय में कोई भी पार्टी हो वोट की जरूरत तो सबको पड़ती है। इसी सोच के तहत पार्टी नेता कार्य करते हुए सबको संतुष्ट करने जुटे हैं। पता चला है कि हर जगह की भांति रीवा जिले में भी ऐसे ऐसे नेताओं ने हो हल्ला कर कांग्रेस का दमन छोड़ने की बात कही है जिनमें में पंची जीतने की औकात नहीं रही। वहीं अब चुनाव के वक्त बरसाती मेंढक की तरह टर्र -टर्र करते हुए यह दावा करने से नहीं चूक रहे अब हम कांग्रेस छोड़कर सैकड़ो साथियों के साथ भाजपा शामिल हुए या होने वाले हैं। लगभग ए सभी पार्टियों का ऐसा ही हाल है । जो पार्टी में रहते- रहते अपनी विश्वसनीय खो चुके अब दूसरी पार्टियों का दामन थामने में लगे हैं। ताकि फिर से हमारी विश्वनीयता व लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ सके। अगर लोकप्रियता नहीं भी बढ़ेगी तो दलबदलुओं में शामिल होकर मीडिया की सुर्खियां तो बनेंगे ही? बता दे यह ऐसे नेता है कि जो जिनका 5 साल तक कोई अता-पता नहीं चल पाता सिर्फ चुनाव आते ही वह प्रगट होते हैं और गुर्राने से बाज नहीं आते। दलबदलुओं के लिए चुनाव कोई अहमियत नहीं रखता। चाहे चुनाव त्रिस्तरी पंचायती राज का हो या फिर विधानसभा या लोकसभा का तभी प्रकट होते हैं जब चुनाव का समय आता है। इसके बाद पता नहीं कौन सी बिल में छुप जाते हैं जनता इन्हें फूटी आंख नहीं सुहाती। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे नेता जो सीजन के समय ही खादी का कुर्ता धारण कर बड़े नेताओं की चौखट चूमन पहुंचते हैं। उनका एक ही मकसद होता है कि टिकट की मांग करेंगे तो मीडिया की सुर्खियां बटोर लेंगे और बड़े नेताओं की नजर में आएंगे। अगर थोड़ा सा विश्वास भी हासिल कर लिया तो जिन्हें टिकट मिला है वह नेता अपने प्रचार प्रसार के लिए तो हमें जिम्मेदारी सौप ही देंगे? गाड़ी मिलेगी खर्च के लिए धन मिलेगा भरपूर नेताजी की चाटूकारिता करेंगे और अपना हित साधेंगे।(वरिष्ठ पत्रकार, समशेर गहरवार, रीवा)
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