मोदी सरकार की युवा विरोधी नीतियों के चलते देश में नौकरियों का अकाल पड़ गया है।
मोदी सरकार की युवा विरोधी नीतियों के चलते देश में नौकरियों का अकाल पड़ गया है।
बैंक ऑफ़ बड़ौदा की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि केवल 2022-23 में ही देश की 375 कंपनियों में 2.43 लाख़ नौकरियाँ घट गईं।
हमारे युवा कुछ मुट्ठीभर नौकरियाँ पाने के लिए लाखों की तादाद में चक्कर काट रहे हैं।
🔸बिहार में सिपाही भर्ती परीक्षा चल रही है, उसमें मात्र 21 हज़ार खाली पदों के लिए 18 लाख अभ्यर्थियों ने आवेदन किया है।
इससे पहले वाली परीक्षा का पेपर 4 दिन पहले लीक हो गया था, जिसके चलते ये परीक्षा दोबारा से कराई जा रही है।
🔸उत्तर प्रदेश में 60 हज़ार सिपाहियों की भर्ती के लिए 26 राज्यों के 6.30 लाख युवाओं ने भी आवेदन किया है।
इस परीक्षा का भी पेपर एक बार लीक हो चुका है।
🔸केवल जुलाई के महीने तक ही, इस साल 1.24 लाख आईटी सेक्टर में नौकरियाँ घटी, जिसमें भारत के युवाओं को खासा नुकसान हुआ।
बैंकिंग, फाइनेंस, इंश्योरेंस, हॉस्पिटलिटी - सभी सेक्टरों में नौकरियाँ कम हुई हैं।
🔸ऊपर से मोदी सरकार चीन को "लाल आँख" नहीं, चीनी कंपनियों के निवेश के लिए "लाल कारपेट" बिछाने जा रही है।
🔸मोदी जी ने ग़लत methodology का इस्तेमाल करवा कर एक रिपोर्ट बनवाई और करोड़ों रोज़गार देने के झूठे दावे किये।
KLEMS के डेटा से फ़र्ज़ी narrative गढ़ने के लिए मोदी सरकार ने Census का सहारा न लेकर, अलग-अलग वर्ष के लिए अलग-अलग आबादी के डेटा सेट का सहारा लिया, जिससे Worker Population Ratio ग़लत आया। ऊपर से ग्रामीण और शहरी आबादी की वृद्धि एक ही मान ली गई, जिससे Overestimation हुआ।
इसके अलावा ये अब जगजाहिर है कि इसमें 'unpaid labour’ और ‘one-hour work per week’ को भी रोज़गार की श्रेणी में गिना गया है।
भारत के हताश-निराश बेरोज़गार युवा मोदी सरकार के ये झूठे हथकंडे अब समझ गए हैं।
आने वाले राज्यों के चुनाव में भाजपा को इसका सबक ज़रूर मिलेगा।
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