एसजीएमएच में कोरोना का कु-प्रबंधन....कोरोना के जिम्मेदार सोते रहे, वार्ड बॉय के भरोसे चल रही व्यवस्था... विभागाध्यक्ष डॉ मनोज इंदुलकर और अधीक्षक डॉ पीके लखटकिया, कोरोना चीफ डॉ एके बजाज समेत फॉरेंसिंक व कैजुवलटी के चिकित्सकों को बचाने में जुटा डीन

By mnnews24x7.com Tue, Aug 11th 2020 मिसिरगवां समाचार     

एसजीएमएच में कोरोना का कु-प्रबंधन....कोरोना के जिम्मेदार सोते रहे, वार्ड बॉय के भरोसे चल रही व्यवस्था...
विभागाध्यक्ष डॉ मनोज इंदुलकर और अधीक्षक डॉ पीके लखटकिया, कोरोना चीफ डॉ एके बजाज समेत फॉरेंसिंक व कैजुवलटी के चिकित्सकों को बचाने में जुटा डीन
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रीवा. विंध्य के सबसे बड़े हॉस्पिटल में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। कोरोना विभाग के जिम्मेदारों की लापरवाही के चलते मरीजों के इलाज में घोर लापरवाही बरती जा र ही है। इतना ही नहीं मरने वाले लोगों के शव से अमानवीय व्योहार किया जा रहा है। तभी तो एक युवक का शव के टैग में एक बुजुर्ग का टैग लगा दिया। मेडिकल डीन ने बवाल के दबाव में आकर आनन फानन में ड्यूटी डॉक्टर को सस्पेंड कर इति कर ली। हैरानी की बात तो यह कि मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ मनोज इंदुलकर, अधीक्षक डा पीके लखटकिया पूरे मामले को तीन दिन से दबाए हुए थे। इतना ही नहीं टैग लगाने की जिम्मेदार फॉरेंसिंग चिकित्सकों की है। परिजनों को सूचना देने की जवाबदेही कैजुवलटी के चिकित्सक यानी सीएमओ की है। लेकिन, कार्रवाई महज ड्यूटी डॉक्टर पर की गई।

संजय गांधी अस्पताल में ड्यूटी डॉक्टर राकेश पटेल को सस्पेंड के बाद मेडिकल कालेज प्रबंधन इति श्री कर लिया है। सबसे बड़ा सवाल यह कि बवाल के दबाव में आकर आनन फानन में ड्यूटी डॉक्टर को सस्पेंड कर दिया गया। लेकिन, जांच इस बात पर क्यों नहीं की गई। पहला सस्पेक्टेड मरीज को कोविड-19 वार्ड में किस डॉक्टर के आदेश से शिफ्ट किया गया। जांच रिपोर्ट का इंतजार क्यों नहीं किया। सस्पेक्टेड विवेक कुशवाहा की मौत के बाद शव को कोविड-19 से अलग मच्र्युरी में क्यों नहीं रखा गया। शव वार्ड से कैजुवलटी में पहुंचा तो वहां के चिकित्सक परिजनों को सूचना क्यों नहीं दी। परिजनों को सूचना देने की जवादेही कैजुलवली के सीएमओ व अस्पताल चौकी पुलिस की है। लेकिन, ऐसा नहीं किया गया। इसके बाद शव मच्र्युरी में रखवा दिया गया। मच्र्युरी में फॉरेङ्क्षसक चिकित्सकों की जिम्मेदारी है कि मच्र्युरी में रखे गए शव को वार्ड से जारी किए गए टैग को शव में लगाए। मच्र्युरी में जमा करने और निकालने के दौरान वार्ड से आए दस्तावेज का मिलान करे। लेकिन, ऐसा नहीं किया गया।
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कोरोना के प्रमुख क्या करते रहे
अस्पताल में 7 व 8 अगस्त को 24 घंटे के भीतर चार की मौत हुुई तो अस्पताल के डीन, अधीक्षक और कोरोना टीम के चीफ डॉ मनोज इंदुलकर, डॉ बजाज आदि ने गंभीरता से नहीं लिया। और न ही टीम को सक्रिय किया। ऐसे में संस्था प्रमुख भी उतना ही जिम्मेदार हैं जितना ड्यूटी डॉक्टर।
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फॉरेंसिक व कैजुलटी सक्रिय होते तो ऐसा नहीं होता
वार्ड में टैग लगाने की गड़बड़ी सुधारी जा सकती थी। अगर फॉरेसिक और कैजुलटी के डॉक्टरों ने अपनी जिम्मेदारों से ड्यूटी करते तो ऐसा नहीं होता। वार्ड से शव को जैसे ही कैजुलवटी चिक्सिकों के हवाले किया गया। वहां के चिकित्सकों ने न तो परिजनों को सूचना दी और न ही प्रबंधन से मशविरा किया। अगर शवों की पहचान के लिए परिजनों को सूचना दी गई होती तो जिस बैग में बुजुर्ग का शव यानी खुशीराम का शव रखा था परिजन बुजुर्ग की शिनाख्त कर लेते और दोनों विभागों की टीम सक्रिय होती तो विवेक और खुशीराम के शव में अदला-बदली नहीं होती।
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कमिश्नर को गुमराह कर रहा अस्पताल प्रबंधन
मेडिकल कालेज के डीन दो प्रोफेसरों से आनन फानन में जांच कराकर ड्यूटी डॉक्टर को निलंबित कर इति श्री कर लिया। पूरे मामले में एक दर्जन से ज्यादा लोगों पर जवाबदेही तय होनी चाहिए। लेनिक, डीन संभागायुक्त गुमराह करने में जुटे हैं। जिससे डीन समेत जिम्मेदारों की गर्दन बची रहे।
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