उमरिया म.प्र.// नौरोजाबाद// कंचन कोल माइंस कर रही लोकल मजदूरों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार, दैनिक वेतन से आधा मिलता है भुगतान, कर्मचारियों को मेडिकल सुविधा, वेतन पर्ची, पी. एफ. सुविधा से भी रखा जाता है वंचित

By mnnews24x7.com Thu, Dec 3rd 2020 मिसिरगवां समाचार     

उमरिया म.प्र.// नौरोजाबाद// कंचन कोल माइंस कर रही लोकल मजदूरों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार, दैनिक वेतन से आधा मिलता है भुगतान, कर्मचारियों को मेडिकल सुविधा, वेतन पर्ची, पी. एफ. सुविधा से भी रखा जाता है वंचित
नौरोजाबाद - आज की बड़ी खबर , कंचन कोल में माइन्स के अधिकारी लगातार अपने मनमाने रवैए की वजह से सुर्ख़ियो में रहते है। यहां काम करने वाले मजदूर, ड्राइवर हमेशा आ नाखुश नजर आते हैं, पर मजाल है कि इनके बेरुखे रवैए पर कोई भी एक्शन लिया जा सके।
*जानते हैं क्या है पूरा मामला*
जब मीडिया ने कर्मचारियों से बात की तो प्रबंधन की पोल खुल कर सामने आ गई।
बताया गया कि लोकल मजदूरों का कई वर्षों से शोषण होता आ रहा है, शासन द्वारा निर्धारित वेतन से आधा से भी कम वेतन में हमे काम करना पड़ता है और अधिकारियो से कोई भी प्रश्न पूछने की हिमाकत करने पर बिना किसी वजह से काम से निकाल दिया जाता है, हक की आवाज उठाने की वजह से कुछ दिनों पहले 5-6 कर्मचारियों को मारपीट करके काम से निकाला भी जा चुका है। काम कर रहे लोगो की मजबूरी का किस कदर फायदा उठाया जा रहा है, यह अब किसी से छुपा नही है।
हमने यूनियन के पदाधिकारियो से भी बात की जिसमे उन्होंने बताया कि मजदूरों को मेडिकल सुविधा मुहैया कराई जाए, वेतन पर्ची हर माह दी जाए, पी. एफ. नंबर हर कर्मचारी को दिया जाए जिससे एक कंपनी के चले जाने पर किसी मजदूर की गाढ़ी कमाई मारी न जा सके। साथ ही बोनस भी हर मजदूर को मिले यही हमारी मांग है।
मजदूरों की शिकायत है की पिछली कंपनी ने पी. एफ. तो हर मजदूर का काटा पर बिना पी.एफ. का भुगतान किए ही यह से चले गए जिससे ।कई लोगो की वर्षो की जमा पूंजी हड़प ली गई। जिस ओर प्रशासन को अवश्य अपना ध्यान केंद्रित करना होगा।
माइंस में गाड़ी और मशीनें चलाने वाले ड्राइवर जान हथेली में लेकर काम करते है, जिसके वाबजूद शासन द्वारा निर्धारित वेतन भी उन्हें नही मिल पाता। एक बात और प्रकाश में आई जहां लोकल ड्राइवर और मशीन ओपरेटर की सैलरी बाहर से आए मशीन ऑपरेटरों की सैलरी से काफी कम भुगतान की जाती है। जहाँ बाहरी ऑपरेटरों को रहने खाने-पीने का सारा खर्च कंपनी द्वारा वहन किया जाता है तो दूसरी ओर लोकल कर्मचारी नास्ता दूर की बात पानी की बोतल भी अपने साथ लेकर जाते है। फिर भी वेतन में कटौती की कोई ठोस वजह नही जान पड़ती।

कहने को माइंस में 80 प्रतिशत लोकल मजदूरों को और 20 प्रतिशत ही बाहर प्रदेशो के मजदूरों को काम पर रखने का प्रावधान शासन द्वारा निहित है। पर मनमानी किस कदर है यह जांच का विषय है।
अब सवाल ये खड़ा होता है कि मजदूरों की वेतन से काटा गया पैसा किसकी जेब गरम कर रहा है यह जरूर जांच का विषय बना हुआ है।
प्रशासन से सभी की एक ही अपील है सभी मजदूरों को उनका हक दिलाया जाए।

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